भारत-पाक तनाव पर ट्रंप का बयान: “वे इसे सुलझा लेंगे” — क्या अमेरिका एक गंभीर संकट को हल्का समझ रहा है?

दिल्ली-
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव फिर गहराता दिख रहा है। इस बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान चर्चा का विषय बन गया है। ट्रंप ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच “हज़ार साल से संघर्ष चल रहा है”, लेकिन वे “इसे किसी न किसी तरह सुलझा लेंगे।”
22 अप्रैल को हुए इस आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई। हमला उस समय हुआ जब पर्यटकों से भरी एक बस अनंतनाग ज़िले के पहलगाम इलाके से गुजर रही थी। हमलावरों ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं, जिससे कई लोग घायल भी हुए। यह घटना 2019 के पुलवामा हमले के बाद सबसे बड़ा आतंकी हमला मानी जा रही है। हमले की जिम्मेदारी ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ ने ली है, जो कि प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी समूह माना जाता है।
हमले के एक दिन बाद, ट्रंप से जब पत्रकारों ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बारे में सवाल किया, तो उन्होंने कहा, “मैं भारत के भी बहुत करीब हूं और पाकिस्तान के भी। यह लड़ाई हज़ारों साल से चली आ रही है। कल का हमला बहुत बुरा था, 30 से ज़्यादा लोग मारे गए। लेकिन मुझे यकीन है कि वे इसे किसी न किसी तरह सुलझा लेंगे।”
ट्रंप का यह बयान उस समय आया है जब दोनों देशों के बीच स्थिति बेहद संवेदनशील बनी हुई है। भारत ने पाकिस्तान पर एक बार फिर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है, वहीं पाकिस्तान ने इसे ‘राजनीतिक आरोप’ बताया है। भारत में आम जनता से लेकर राजनीतिक हलकों तक, ट्रंप की टिप्पणी को हल्के में लिया गया संदेश माना जा रहा है।
कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का बयान, जहां एक तरफ दो देशों के बीच दशकों पुराने विवाद को एक सामान्य तनाव की तरह प्रस्तुत करता है, वहीं यह उस पीड़ा को नजरअंदाज करता है जिससे पीड़ित परिवार और पूरा देश गुज़र रहा है। कई जानकारों ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या एक वैश्विक शक्ति होने के नाते अमेरिका को सिर्फ ‘देखते रहने’ की भूमिका में रहना चाहिए, या आतंकवाद के खिलाफ एक स्पष्ट और कड़ा रुख अपनाना चाहिए?
भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे कश्मीर विवाद और पाकिस्तान की सरज़मीं से संचालित आतंकी संगठनों की मौजूदगी को देखते हुए, यह बयान न सिर्फ कूटनीतिक रूप से संवेदनशील है, बल्कि यह अमेरिका की भूमिका पर भी सवाल खड़ा करता है।
आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि इस हमले के बाद भारत क्या रुख अपनाता है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किस तरह की प्रतिक्रिया सामने आती है।