सबसे पहले इस मुद्दे को insightsstory.news द्वारा ही पुलिस की जानकारी में लाया गया था।

भानु ठाकुर राजगढ़ –
सरकारी नौकरी पाने का सपना संजोए 12 बेरोज़गार युवाओं के लिए यह सपना एक भयानक धोखे में तब्दील हो गया। राजगढ़ और सारंगपुर के सरकारी अस्पतालों में सपोर्टिंग स्टाफ की भर्ती का झांसा देकर दो युवकों—राकेश राजपूत और भूपेंद्र—ने युवाओं से लाखों रुपये की ठगी की। आरोपियों ने नकली नियुक्ति पत्र, अस्पताल के फर्जी लेटरहेड और झूठे हस्ताक्षर का सहारा लेकर एक सुनियोजित साजिश रची, जो आखिरकार पुलिस जांच के जाल में फंस गई।
कैसे रची गई ये साजिश?
शिकायतकर्ता युवाओं के अनुसार, भूपेंद्र खुद को अस्पताल स्टाफ का नज़दीकी बताकर विश्वास जीतता था। वह राकेश को “क्लाइंट” बनाकर साथ लाता, जो खुद को मंत्री या किसी सरकारी अधिकारी का करीबी बताता था। युवाओं को यह भरोसा दिलाया जाता कि थोड़े पैसे में उनका चयन पक्का है। उनसे आधार कार्ड, मार्कशीट, पासबुक और फोटोग्राफ मांगे जाते थे—ताकि प्रक्रिया असली लगे।
इसके बाद उन्हें सरकारी अस्पताल राजगढ़ या सारंगपुर के लेटरहेड पर छपे नियुक्ति पत्र सौंपे जाते। इन पत्रों पर अस्पताल के अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर भी होते, जिससे शक की कोई गुंजाइश न बचे।
बेरोज़गारी का फायदा उठाकर खेला गया खेल
भारत में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या है, खासकर ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में। इस गैंग ने इसी मनोविज्ञान का फायदा उठाया। पीड़ितों ने बताया कि उन्हें बताया गया था कि भर्ती आउटसोर्सिंग के माध्यम से हो रही है और इसके लिए ‘प्रोसेसिंग फीस’ देनी होगी, जो 5,000 से लेकर 50,000 रुपये तक थी।
जब सपना टूटा, तो आंखों से बह निकले आंसू
एक पीड़ित युवक ने बताया, “मैंने अपनी बहन की शादी के लिए जोड़े पैसे इन लोगों को दे दिए, यह सोचकर कि नौकरी लग जाएगी तो घर संभल जाएगा। अब ना नौकरी मिली और ना पैसे बचे।”
एफआईआर का खुलासा: अस्पताल के कर्मचारी भी शामिल
एफआईआर के अनुसार, यह ठगी सिर्फ राकेश और भूपेंद्र तक सीमित नहीं है। पुलिस को संदेह है कि सरकारी अस्पताल के कुछ कर्मचारी भी इस रैकेट में शामिल हो सकते हैं। क्योंकि बिना अंदरूनी सहयोग के अस्पताल के असली लेटरहेड और अधिकारी के हस्ताक्षर जैसी चीज़ें आसानी से नहीं मिल सकतीं।
एफआईआर में दर्ज धाराएं और पुलिस की कार्रवाई
राजगढ़ थाना पुलिस ने इस मामले में IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467, 468, 471 (फर्जी दस्तावेज बनाना और इस्तेमाल करना), और 120-B (साजिश) के तहत केस दर्ज किया है। साथ ही, एसडीओपी और स्वास्थ्य विभाग ने संयुक्त जांच शुरू कर दी है।
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
इस पूरे मामले पर अब तक स्वास्थ्य विभाग के किसी उच्चाधिकारी की कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है। यह चुप्पी भी संदेह को और गहरा कर रही है। क्या सिस्टम में अंदर तक फैले भ्रष्टाचार को छुपाने की कोशिश हो रही है?
आगे क्या?
पुलिस ने आरोपियों को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। एफआईआर में जिन अस्पताल कर्मियों के नाम संदिग्ध रूप से सामने आए हैं, उन्हें नोटिस भेजा गया है। पीड़ितों को न्याय दिलाने और ठगे गए पैसे वापस लाने की उम्मीद अब पुलिस जांच पर टिकी है।
insightsstory.news इस पूरे मामले की सतत निगरानी करेगा और हर अपडेट आप तक पहुंचाएगा। अगर आप भी ऐसे किसी धोखे का शिकार हुए हैं तो हमारी टीम से संपर्क करें। 9009213700 …
