जानिए 2011 की पिछली जनगणना से जुड़े अहम आंकड़े और क्यों टलती रही 2021 की जनगणना.

नई दिल्ली: भानु ठाकुर…
एक ऐतिहासिक मोड़ पर भारत फिर खड़ा है। आज़ादी के 77 साल बाद, केंद्र सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है जो देश के सामाजिक, राजनीतिक और नीतिगत ढांचे को गहराई से प्रभावित कर सकता है। मोदी सरकार ने अगली जनगणना में ‘जाति जनगणना’ को शामिल करने का निर्णय लिया है।
यह सिर्फ एक प्रशासनिक घोषणा नहीं, बल्कि 1931 के बाद पहली बार देश की जातिगत संरचना को आधिकारिक रूप से दर्ज करने की पहल है। उस वक्त ब्रिटिश शासन में जातियों की गिनती हुई थी, लेकिन स्वतंत्र भारत में इसे नजरअंदाज किया गया।
जाति की बात क्यों?
बीते दशक में विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों की आवाज़ें लगातार तेज होती गईं। सवाल उठता रहा: “अगर जाति के आधार पर आरक्षण होता है, तो फिर आंकड़े क्यों नहीं?”
बिहार में नीतीश कुमार की सरकार द्वारा कराए गए जातीय सर्वे के बाद ये बहस और तेज हो गई। और अब, बिहार चुनाव से पहले, केंद्र सरकार के इस फैसले को एक राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक भी माना जा रहा है।
सरकार क्या कहती है?
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा –
“ये फैसला संविधान की भावना और सामाजिक समरसता को ध्यान में रखकर लिया गया है। 1947 से अब तक जातिगत आंकड़े नहीं जुटाए गए थे। अब समय आ गया है कि इस खाई को भरा जाए।”
2011 में क्या हुआ था?
मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2011 में ‘सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना’ (SECC) जरूर कराई गई थी, लेकिन उसकी जातिगत जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई। कांग्रेस सरकार पर जाति आंकड़े दबाने के आरोप भी लगे।
राजनीतिक हमले और पलटवार:
राहुल गांधी लगातार इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार को घेरते रहे हैं। लेकिन अब सरकार ने खेल पलट दिया है। भाजपा का दावा है कि कांग्रेस सिर्फ ‘राजनीतिक फायदे’ के लिए जाति की बात करती थी, लेकिन कदम उठाने से कतराती थी।
क्या बदलेगा इससे?
नीतियों का पुनर्गठन: सामाजिक योजनाएं और आरक्षण व्यवस्था अब आंकड़ों के आधार पर तय हो सकती है।
राजनीतिक समीकरण: जातिगत आंकड़े राजनीतिक दलों की रणनीति में भारी बदलाव ला सकते हैं।
सामाजिक प्रभाव: इससे यह भी सामने आएगा कि किस जाति समूह की स्थिति सामाजिक-आर्थिक रूप से कैसी है।
एक सवाल जो उठता है:
क्या जाति जनगणना सामाजिक न्याय को मजबूती देगी या फिर समाज में नई दरारें खोलेगी? ये फैसला ऐतिहासिक तो है, लेकिन इसके असर दूरगामी होंगे – सकारात्मक भी, और शायद चुनौतीपूर्ण भी।
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फायदा किसे होगा?
ओबीसी और वंचित समुदायों को
ये तबका लंबे समय से कह रहा है कि उन्हें आबादी के अनुपात में हक नहीं मिल रहा।
अगर आंकड़े सामने आते हैं, तो आरक्षण, योजनाएं और संसाधन वितरण में उन्हें न्यायपूर्ण हिस्सेदारी मिल सकती है।
क्षेत्रीय और सामाजिक न्याय आधारित पार्टियों को
जैसे राजद, सपा, जदयू, डीएमके आदि, जो जाति आधारित राजनीति और सामाजिक न्याय को मुख्य एजेंडा बनाते हैं।
उन्हें अपनी बात को मजबूत आधार मिलेगा: “हम जिसकी संख्या में ज्यादा, उसकी हिस्सेदारी में ज्यादा।”
नीतिनिर्माताओं और शोधकर्ताओं को
सरकार को डेटा-आधारित नीति बनाने में मदद मिलेगी।
अब योजनाएं सिर्फ अनुमान पर नहीं, सटीक जातिगत आंकड़ों पर आधारित हो सकेंगी।
नुकसान किसे हो सकता है?
वर्चस्व वाली जातियां जो आरक्षण या विशेष सुविधाएं नहीं पातीं
उन्हें लग सकता है कि नई जातीय सच्चाइयों के सामने उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हो सकती है।
यदि अन्य जातियों की संख्या और पिछड़ापन ज्यादा सामने आया, तो नए आरक्षण की मांगें भी बढ़ेंगी।
भारतीय जनता पार्टी जैसी पार्टी जो जातिगत राजनीति से ऊपर विकास की बात करती रही
इस मुद्दे से उसकी “सबका साथ, सबका विकास” वाली नीति को चुनौती मिल सकती है, क्योंकि अब बहस “किसकी कितनी जनसंख्या” पर केंद्रित हो सकती है।
जाति के नाम पर राजनीति करने का विरोध करने वाले बुद्धिजीवी वर्ग
उनका तर्क है कि इससे समाज में जातिगत भेद और ध्रुवीकरण बढ़ सकता है।
इससे राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता पर प्रभाव पड़ने की आशंका भी जताई जाती है।
संभावित विवाद और जोखिम
जातीय आंकड़ों के खुलने से नई जातियां भी आरक्षण की मांग करने लगेंगी।
जातियों के बीच तुलना, प्रतिस्पर्धा और असंतुलन की स्थिति पैदा हो सकती है।
राजनीति में जातीय ध्रुवीकरण और बढ़ सकता है, जिससे चुनावी माहौल और ज्यादा जाति केंद्रित हो सकता है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को तेलंगाना में जाति जनगणना को लेकर आयोजित बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर खुलकर बात करने में डर क्यों लगता है. राहुल गांधी ने यह भी पूछा कि प्रधानमंत्री क्यों नहीं पूछते कि कॉरपोरेट, न्यायपालिका और मीडिया में कितने दलित, ओबीसी और आदिवासी हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा किजिस तरह का जातिगत भेदभाव भारत में होता है, ऐसा दुनिया में और कहीं नहीं होती.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार सुबह 11 बजे केंद्रीय कैबिनेट की महत्वपूर्ण बैठक हुई. बैठक के बाद, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि केंद्र सरकार ने देश में जाति जनगणना कराने का निर्णय लिया है. इससे पहले 1931 में आखिरी बार जाति जनगणना हुई थी.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को तेलंगाना में जाति जनगणना को लेकर आयोजित बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर खुलकर बात करने में डर क्यों लगता है. राहुल गांधी ने यह भी पूछा कि प्रधानमंत्री क्यों नहीं पूछते कि कॉरपोरेट, न्यायपालिका और मीडिया में कितने दलित, ओबीसी और आदिवासी हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा किजिस तरह का जातिगत भेदभाव भारत में होता है, ऐसा दुनिया में और कहीं नहीं होती.