सीएमएचओ पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी पाने का गंभीर आरोप, पारदर्शिता पर उठे सवाल

आगर मालवा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के गृहक्षेत्र उज्जैन-आगर से एक गंभीर प्रशासनिक लापरवाही और संभावित फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है। उज्जैन संभाग के अंतर्गत आने वाले जिला आगर मालवा के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. राजेश गुप्ता पर आरोप है कि उन्होंने अनुसूचित जनजाति ‘भुजवा’ का फर्जी प्रमाण पत्र पेश कर आरक्षित श्रेणी के अंतर्गत शासकीय नौकरी प्राप्त की।
इस मामले में लोकायुक्त को भेजी गई शिकायत के आधार पर जांच प्रक्रिया चल रही है, और भोपाल स्तर से दस्तावेजों की प्रमाणिकता की पुष्टि के लिए निर्देश जारी किए गए हैं। इससे पहले वर्ष 2018 में भी इस प्रकरण पर जांच हो चुकी थी, परंतु अब फिर से मामला उजागर हुआ है, जिससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या मुख्यमंत्री के गृहक्षेत्र में भी प्रशासनिक पारदर्शिता पर पर्दा डाला जा रहा है? हालांकि इस पूरे मामले में सीएमएचओ डॉक्टर राजेश गुप्ता का कहना है कि वह पूरी तरीके से सही है और उन्होंने किसी तरह की कोई गलती नहीं की है। जांच में यह सब स्पष्ट हो जाएगा। यह बात अलग है कि लंबे समय के बाद भी यह मामला जांच में लंबित है।

1991 की जनगणना और जाति का भ्रम:
1991 की जनगणना में ‘भुजवा’ नामक कोई अनुसूचित जनजाति उज्जैन या आगर क्षेत्र में दर्ज नहीं की गई थी, फिर भी डॉ. गुप्ता ने इस जाति का प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर वर्ष 2004 में नौकरी प्राप्त कर ली। इसके आधार पर उन्होंने पदोन्नति भी प्राप्त की और वर्तमान में एक प्रमुख जिला अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। फ़िलहाल यह मामला लोकायुक्त की जांच में शामिल है।

राजनीतिक और प्रशासनिक संवेदनशीलता:
यह मामला इसलिए और अधिक संवेदनशील हो जाता है, क्योंकि उज्जैन और आगर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का प्रभाव क्षेत्र है। सवाल यह है कि क्या इस तरह के गंभीर आरोपों के बावजूद शासन द्वारा समय रहते कार्रवाई नहीं किया जाना प्रशासनिक लापरवाही नहीं है?
लोकायुक्त का आदेश और संभावित कार्रवाई:
लोकायुक्त कार्यालय ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि संबंधित दस्तावेजों की सत्यता की जांच कर 26 फरवरी 2025 तक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए, जिससे अंतिम निष्कर्ष के आधार पर कार्रवाई हो सके। यदि आरोप प्रमाणित होते हैं, तो यह न केवल पद समाप्ति का मामला बनेगा, बल्कि अन्य कानूनी कार्यवाहियों की भी संभावना बनती है। लेकिन तय तारीख के बाद भी अभी तक यह मामला जांच में लंबित है, और गुप्ता अपने पद पर बने हुए है।
प्रशासन और सरकार की परीक्षा:
मुख्यमंत्री के गढ़ से उठ रही इस शिकायत ने सरकार की “जीरो टॉलरेंस ऑन करप्शन” नीति की परीक्षा ले ली है। जनता और विपक्ष की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सरकार इस प्रकरण को गंभीरता से लेकर पारदर्शिता और ईमानदारी की मिसाल पेश करेगी, या यह मामला भी लंबे समय तक प्रशासनिक भूल-चूक के नाम पर टाल दिया जाएगा।